कश्मीरी कविता: सरहदों से परे एक साझा सपना

कश्मीरी कविता: सरहदों से परे एक साझा सपना
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जब-जब कश्मीर की चर्चा होती है, सियासी गलियारों में गरमी और मीडिया चैनलों पर बहसें तेज हो जाती हैं। पर क्या आपने कभी सोचा है कि इसी कश्मीर की वादियों में सदियों से कुछ ऐसा बहता रहा है, जो सरहदों, ताकत और धमकियों से परे है—कविता, संगीत और कला।

क्या आप जानते हैं, शारदा पीठ (जो अब पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में है) कभी पूरे भारतीय उपमहाद्वीप का ज्ञानकेंद्र था? यहां संस्कृत और कश्मीरी भाषा दोनों में अद्भुत ग्रंथ रचे गए। ललितादित्य, अवंतीवर्मन, हब्बा खातून—इनके गीतों का असर न भारत समझ सका, न पाकिस्तान भूल पाया।

इस वादी का इतिहास बताता है कि जब राजनीति विभाजन का रंग भरती है, तब वहां की कला, कविता और यादें अनजाने में एकता का पुल बना लेती हैं। आज भी कश्मीर की लोककथाएँ, शेर-ओ-शायरी और संगीत दोनों देशों के युवाओं को ऑनलाइन जोड़ते हैं—YouTube चैनलों या इंस्टाग्राम रील्स के ज़रिए।

एक सवाल: अगर समूची कश्मीरी युवा पीढ़ी एक साझा साहित्य उत्सव मनाए, तो क्या सरहद की दीवारें ढह जाएँगी? शायद नहीं, पर कविताओं के पुल पर कुछ मुलाकातें ज़रूर हो सकती हैं।

This article was inspired by the headline: 'Pakistan's Asim Munir threatens India again, rekindles Kashmir issue - The Economic Times'.

Language: Hindi
Keywords: कश्मीर, कविता, संस्कृति, भारत-पाकिस्तान रिश्ते, शांति, कला, हिस्ट्री
Writing style: सृजनात्मक, संवेदनशील, विचारोत्तेजक
Category: संस्कृति और समकालीन विचार
Why read this article: यह लेख कश्मीर विवाद से परे उसकी सांस्कृतिक और रचनात्मक ताकत को उजागर करता है, जिससे नए नज़रिए और बातचीत की प्रेरणा मिलती है।
Target audience: युवा, विद्यार्थी, शांति में रुचि रखने वाले नागरिक, साहित्य प्रेमी

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