क्या अमेरिका से सस्ती कृषि आयात खोलना भारत के किसानों के लिए खतरा है? — GTRI की चेतावनी पर विवेचना

क्या अमेरिका से सस्ती कृषि आयात खोलना भारत के किसानों के लिए खतरा है? — GTRI की चेतावनी पर विवेचना
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संक्षिप्त सारांश:

भारत-अमेरिका व्यापार समझौते की बातचीत के दौरान, ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) ने चेतावनी दी है कि यदि भारत अमेरिकी कृषि उत्पादों पर शुल्क घटा या हटा देता है, तो भारतीय किसानों व खाद्य सुरक्षा पर भारी खतरे उत्पन्न हो सकते हैं। GTRI के अनुसार, एक बार इन शुल्कों में स्थायी रूप से कटौती करना रणनीतिक रूप से गलत होगा, क्योंकि फिर भारत के पास अपनी नीतियों में बदलाव की गुंजाइश नहीं बचेगी। अमेरिकी कृषि उत्पादों पर भारी सब्सिडी दी जाती है, जबकि भारत का कृषि क्षेत्र छोटे किसानों पर आधारित और आजीविका का आधार है।

विश्लेषण:

GTRI की चेतावनी न केवल आर्थिक, बल्कि सामाजिक व राजनीतिक मर्म को भी छूती है। अमेरिकी कृषि क्षेत्र में दी जाने वाली सब्सिडी भारतीय किसानों के लिए असमान प्रतिस्पर्धा का वातावरण तैयार करती है। यदि शुल्क हटा दिए गए, तो वैश्विक मंदी (जैसे 2014-16 के दौरान) में सस्ता अनाज भारतीय बाजारों में भर जाएगा, जिससे करोड़ों किसानों की आजीविका पर सीधा प्रभाव पड़ेगा। यह सिर्फ अर्थव्यवस्था नहीं, बल्कि देश की खाद्य संप्रभुता का प्रश्न भी है — विशेषकर तब, जब विश्व भर में भू-राजनीतिक अस्थिरता बढ़ रही हो।

उल्लेखनीय है कि अमेरिका भारतीय डेयरी व अन्य उत्पादों पर नियमन को 'अत्याधिक' या 'वैज्ञानिक आधारहीन' मानता है, लेकिन भारतीय स्वास्थ्य मानकों, परंपरागत विश्वास और खाद्य जूनटेरेशन की सुरक्षा जरूरतों को नजरअंदाज करता है। GTRI ने, उदाहरण के लिए, भारत में पशुखाद्य में मांस का उपयोग निषिद्ध रखने की बात पर बल दिया है, जो देसी उपभोक्ताओं की धार्मिक व भावनात्मक संवेदनाओं से जुड़ा है। इसी प्रकार, GM फसलों को भारत में लेकर अमेरिका जितना ही आतुर है, उतना ही इसमें उपभोक्ता व पर्यावरणीय सरोकार जुड़े हैं।

चर्चा: आज यह मुद्दा क्यों मायने रखता है?

कृषि नीतियां सिर्फ व्यापारिक नहीं, सामाजिक और राजनीतिक भी हैं। भारत में 700 मिलियन से अधिक लोग खेती पर निर्भर हैं — यह न केवल उनकी आय, बल्कि उनकी पहचान, संस्कृति और क्षेत्रीय स्थिरता से भी जुड़ा है। अमेरिका की बाजार आधारित, कॉरपोरेट कृषि मॉडल भारत के छोटे, मल्टी-क्रॉप, और लघु-किसान आधारित मॉडल से भिन्न है।

यह चर्चा वैश्वीकरण के युग में 'समान प्रतिस्पर्धा' बनाम 'रक्षा की जरूरत' के बीच संतुलन साधने की है। भारत जैसे देश, जहां खेती आजीविका के साथ खाद्य सुरक्षा का मूल आधार है, उन्हें सुगमता से बाज़ार खोलने से पहले दीर्घकालीन परिणामों का मूल्यांकन करना चाहिए। क्या अमेरिका जैसे सब्सिडी आधारित कृषि उत्पादों को बिना शुल्क के आयातित करना भारतीय किसानों के हित में होगा — या यह देश की आत्मनिर्भरता और ग्रामीण जीवन की रीढ़ तोड़ देगा?

इस पूरे विवाद में भारत के लिए अहम चेतावनी यह है: कृषि सेक्टर को लेकर ऐसे कोई भी फैसले जल्दबाजी में या स्थायी तरीके से — और खासकर अमेरिकी दबाव में — नहीं लेने चाहिए। GTRI का तर्क है कि जैसे अमेरिका तंबाकू व अन्य उत्पादों पर 350% तक शुल्क और कठिन गैर-टैरिफ प्रतिबंधों का सहारा लेता है, वैसे ही भारत को भी अपनी खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बचाने का पूरा अधिकार है।

कुछ ज़रूरी प्रश्न:

  • क्या FTA की संभावित शर्तें भारत की खाद्य संप्रभुता को खोखला तो नहीं कर देंगी?
  • छोटे किसानों के अस्तित्व व कृषि विविधता के लिए संरक्षणवादी नीतियां जरूरी हैं या बोझ?
  • भारत किस सीमा तक GM उत्पादों, विदेशी मानकों और दबावों के आगे झुक सकता है?

निष्कर्ष:

भारत को व्यापार वार्ताओं में लचीलापन और दृढ़ता दोनों कायम रखनी चाहिए। आयात शुल्क और अन्य नीतियों पर ढील देने से पहले इसके राज्य, समाज और किसानों पर पड़ने वाले प्रभावों का गंभीरता से अध्ययन करना अनिवार्य है।

Language: Hindi
Keywords: भारत, अमेरिका, व्यापार समझौता, कृषि नीति, शुल्क, किसान, खाद्य सुरक्षा, GTRI, GM फसलें, सब्सिडी, FTA
Writing style: विश्लेषणात्मक, विचारशील, प्रवाहपूर्ण, समावेशी
Category: विचार / कृषि नीति / व्यापार
Why read this article: यह आलेख भारत-अमेरिका व्यापार समझौते और कृषि शुल्क विवाद को न केवल संक्षिप्तता से प्रस्तुत करता है, बल्कि उसके बहुआयामी प्रभावों — आर्थिक, सामाजिक, और राजनीतिक — की भी गहराई से पड़ताल करता है। यह किसानों की आजीविका, खाद्य सुरक्षा और नीति निर्माण के तंत्र को लेकर ज़रूरी सवाल उठाता है।
Target audience: नीति-निर्माता, छात्र, पत्रकार, किसान, व्यापार विशेषज्ञ, जागरूक नागरिक

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