क्या कश्मीर सच में दो देशों के लिए 'मायावी चाबी' है?

क्या कश्मीर सच में दो देशों के लिए 'मायावी चाबी' है?
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पाकिस्तान के सैन्य प्रमुख द्वारा बार-बार दिए जाने वाले बयानों और कश्मीर का मुद्दा समय-समय पर वैश्विक मंच पर छिड़ने से एक दिलचस्प सवाल सामने आता है—क्या कश्मीर, भारत और पाकिस्तान दोनों की 'राष्ट्रीय पहचान' का केंद्रबिंदु बन चुका है? इतिहास में झाँकें तो समझ आता है कि कई देशों ने अपनी उभरती अस्मिता को किसी एक भूभाग या प्रतीक से जोड़कर उसे भावनात्मक बना दिया, जैसे-जैसे जर्मनी के लिए बर्लिन या इज़रायल के लिए यरुशलम।

क्या आपने कभी सोचा है, अगर दोनों देश एक दिन कश्मीर को साझा विरासत मानकर सांस्कृतिक आदान-प्रदान का मंच बना दें? क्या तब भी कश्मीर इतना विवादित रहेगा? ऐसा कल्पना करना अजीब जरूर लगता है, लेकिन आपको बता दें कि 1950 और 1960 के दशक में कुछ समय के लिए 'इंडो-पाक फोक डांस फेस्टिवल्स' हकीकत थे, जहाँ कलाकार बिना वीजा साझी विरासत का जश्न मनाते थे।

यह प्रश्न आज भी जिंदा है: क्या कश्मीर विवाद जारी रहना दो देशों की सियासी ज़रूरत है या फिर सदियों पुरानी साझी विरासत को याद करने का वक्त आ गया है? हो सकता है, कश्मीर फिर से कला, संवाद और मेलजोल का केंद्र बन जाए—सिर्फ धमकियों, बयानबाज़ी या तनाव का नहीं।

क्या हम एक कल्पना कर सकते हैं जहाँ अखबारों की सुर्खियाँ कहें—‘कश्मीर के पुलों पर फिर सज उठा मेल-मिलाप का संगम’?

सोचिए, सवाल पूछिए, शायद जवाब वहीं मिल जाए।

Language: Hindi
Keywords: कश्मीर, भारत-पाक संबंध, इतिहास, शांति, साझी विरासत, राजनीति, संवाद, धारणा
Writing style: विचारोत्तेजक, कल्पनाशील, संवादात्मक
Category: समाज और राजनीति
Why read this article: यह लेख कश्मीर मुद्दे को एक नए नजरिए से देखने, ऐतिहासिक घटनाओं और कल्पनाशील संभावनाओं के सहारे जिज्ञासा जगाता है।
Target audience: साधारण पाठक, युवा, इतिहास या समसामयिक राजनीति में रुचि रखने वाले

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