क्या कश्मीर हमारे समय का 'श्रेग़्रास' है?

क्या कश्मीर हमारे समय का 'श्रेग़्रास' है?
1.0x

कल्पना कीजिए, एक मैदान जहाँ दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यताएँ, सबसे ऊँचे पहाड़ और सबसे जटिल कहानियाँ एक जगह बैठी हों। कश्मीर वो खेत है, जहाँ हर मौसम में नए बीज बोए जाते हैं—कभी उम्मीद के, तो कभी बदहवासी के।

हर बार जब कोई नेता कश्मीर की बात करता है, मुझे लगता है जैसे इतिहास खुद को दोहराने पर आमादा है। शतरंज की गोटी की तरह, किरदार बदलते हैं पर चालें वैसी ही रहती हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि कश्मीर केवल एक भूखंड नहीं, बल्कि एक आइना है—जो दिखाता है कि दक्षिण एशिया सपनों, दर्द और राजनीति को कैसे गूंथता है?

कुछ लोग मानते हैं कि कश्मीर मुद्दा कभी हल नहीं होगा; वो एक 'श्रेग़्रास' (Gordian Knot) है, जिसे कोई नहीं सुलझा सकता, सिर्फ काट सकता है। लेकिन क्या वाकई सच्चा हल केवल तलवार से ही निकलता है, या संवाद से भी? शायद कश्मीर का असली समाधान है—मूल्य, इतिहास और मानवता को गूंथते रहना, जब तक नए धागे मजबूत न हो जाएँ।

सोचिए, अगर किसी दिन, दोनों देशों के आम लोग तय करें कि कश्मीर को डर की नहीं, उम्मीद की ज़मीन बनानी है, तो क्या दुनिया बदल जाएगी? या फिर हम ऐतिहासिक रट में ही उलझे रहेंगे?

This article was inspired by the headline: 'Pakistan's Asim Munir threatens India again, rekindles Kashmir issue - The Economic Times'.

Language: -
Keywords: कश्मीर, भारत-पाकिस्तान, इतिहास, राजनीति, श्रेग़्रास, आशा, संवाद, दक्षिण एशिया
Writing style: काव्यात्मक, प्रतिबिंबात्मक, विचारोत्तेजक
Category: समाज और राजनीति
Why read this article: इस लेख में कश्मीर को केवल भू–राजनीतिक मुद्दा नहीं, बल्कि ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और भावनात्मक प्रतीक के रूप में देखा गया है, जो पाठकों को पुराने नजरिए से आगे सोचने के लिए प्रेरित करता है।
Target audience: जनरल पब्लिक, युवा, इतिहास व अंतरराष्ट्रीय राजनीति में रुचि रखने वाले व्यक्ति

Comments

No comments yet. Be the first to comment!

0/2000 characters