कल्पना कीजिए, एक मैदान जहाँ दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यताएँ, सबसे ऊँचे पहाड़ और सबसे जटिल कहानियाँ एक जगह बैठी हों। कश्मीर वो खेत है, जहाँ हर मौसम में नए बीज बोए जाते हैं—कभी उम्मीद के, तो कभी बदहवासी के।
हर बार जब कोई नेता कश्मीर की बात करता है, मुझे लगता है जैसे इतिहास खुद को दोहराने पर आमादा है। शतरंज की गोटी की तरह, किरदार बदलते हैं पर चालें वैसी ही रहती हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि कश्मीर केवल एक भूखंड नहीं, बल्कि एक आइना है—जो दिखाता है कि दक्षिण एशिया सपनों, दर्द और राजनीति को कैसे गूंथता है?
कुछ लोग मानते हैं कि कश्मीर मुद्दा कभी हल नहीं होगा; वो एक 'श्रेग़्रास' (Gordian Knot) है, जिसे कोई नहीं सुलझा सकता, सिर्फ काट सकता है। लेकिन क्या वाकई सच्चा हल केवल तलवार से ही निकलता है, या संवाद से भी? शायद कश्मीर का असली समाधान है—मूल्य, इतिहास और मानवता को गूंथते रहना, जब तक नए धागे मजबूत न हो जाएँ।
सोचिए, अगर किसी दिन, दोनों देशों के आम लोग तय करें कि कश्मीर को डर की नहीं, उम्मीद की ज़मीन बनानी है, तो क्या दुनिया बदल जाएगी? या फिर हम ऐतिहासिक रट में ही उलझे रहेंगे?
This article was inspired by the headline: 'Pakistan's Asim Munir threatens India again, rekindles Kashmir issue - The Economic Times'.
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