परिचय
त्रिभाषा सूत्र भारत सरकार की एक शैक्षिक नीति है, जिसका उद्देश्य भारतीय छात्रों को तीन भाषाएँ पढ़ने हेतु प्रोत्साहित करना है। इस सूत्र के तहत, स्कूलों में छात्रों को उनकी मातृभाषा/प्रादेशिक भाषा, हिंदी तथा अंग्रेजी अथवा तृतीय भाषा सिखाई जाती है। भारत में भाषाई विविधता और राष्ट्रीय एकता को ध्यान में रखते हुए यह नीति 1968 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत लागू की गई थी एवं इसके पश्चात 1986 तथा 2020 में आए शिक्षा नीति सुधारों में इसे दोहराया गया।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
त्रिभाषा सूत्र की अवधारणा सबसे पहले क़ोठारी आयोग (1964-66) की संस्तुतियों से उत्पन्न हुई। आयोग ने अनुशंसा की कि बच्चों को उनकी मातृभाषा/राज्य भाषा, हिंदी और अंग्रेजी में शिक्षा दी जाए। इसका मुख्य उद्देश्य छात्रों को भाषायी रूप से सक्षम बनाना, राष्ट्रीय एकता को सशक्त करना, और विभिन्न क्षेत्रों के बीच संवाद की सुविधा बढ़ाना था।
त्रिभाषा सूत्र की संरचना
आमतौर पर त्रिभाषा सूत्र निम्नानुसार लागू होता है:
- पहली भाषा: प्रादेशिक भाषा या मातृभाषा (उदाहरण: मराठी, तमिल, बांग्ला, आदि)।
- दूसरी भाषा: हिंदी-अभिषिक्त राज्यों में यह आमतौर पर अंग्रेजी/भारतीय भाषा होती है; गैर-हिंदी भाषी राज्यों में यह हिंदी होती है।
- तीसरी भाषा: हिंदी क्षेत्र में यह अंग्रेजी अथवा कोई आधुनिक भारतीय भाषा; गैर-हिंदी क्षेत्रों में यह अंग्रेजी अथवा कोई अन्य भारतीय भाषा (हिंदी सहित)।
प्रमुख उद्देश्य
- भाषाई विविधता का सम्मान एवं संरक्षण।
- सांस्कृतिक एकता व राष्ट्रीय एकजुटता को बढ़ावा देना।
- विद्यार्थियों को स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संवाद के सक्षम बनाना।
विवाद और चुनौतियाँ
त्रिभाषा सूत्र के क्रियान्वयन को लेकर विभिन्न राज्यों में समय-समय पर विवाद या असहमति रही है।
- हिंदी भाषी राज्यों में स्थानीय भाषा और अंग्रेजी पर ज़ोर अधिक रहा, लेकिन तीसरी भाषा के चयन को लेकर ढील रही।
- गैर-हिंदी भाषी राज्यों, जैसे तमिलनाडु, महाराष्ट्र आदि ने हिंदी भाषा की अनिवार्यता का विरोध किया है और इसे सांस्कृतिक थोप के रूप में देखा गया है।
- क्षेत्रीय पहचान, भावनात्मक जुड़ाव, संसाधनों की कमी एवं शिक्षक प्रशिक्षकों की उपलब्धता भी बड़ी चुनौती बनी रही है।
समकालीन संदर्भ
2020 में आई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में त्रिभाषा सूत्र को दोहराया गया, किन्तु राज्यों को भाषाओं के चयन में लचीलापन देने का प्रावधान किया गया। महाराष्ट्र सहित तमिलनाडु, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल ने हिंदी की अनिवार्यता पर सवाल उठाए हैं और क्षेत्रीय भाषा की प्रमुखता बनी रहे, इस पर ज़ोर दिया है।
निष्कर्ष
त्रिभाषा सूत्र भारत के बहुभाषी समाज के लिए एक समावेशी नीति के रूप में स्थापित है, जिसका लक्ष्य सम्पूर्ण राष्ट्र में भाषाई एकीकरण को बल देना है, परंतु इसकी सफलता राज्य के सहयोग, स्थानीय भावनाओं के सम्मान एवं शिक्षण व्यवस्था की गुणवत्ता पर निर्भर करती है।
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