परिचय
न्यायिक हिरासत भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली का एक महत्वपूर्ण उपकरण है, जिसका प्रयोग आरोपित व्यक्ति को अदालती आदेश के तहत सीमित समय के लिए जेल या अन्य निगरानी स्थान पर रखने के लिए किया जाता है। न्यायिक हिरासत पुलिस हिरासत से भिन्न है, जिसमें आरोपी को पुलिस अवधिकारियों की निगरानी में रखा जाता है।
परिभाषा
न्यायिक हिरासत वह अवस्था है जिसमें एक आरोपी को अदालत के आदेश से, पुलिस रिमांड की समाप्ति के पश्चात या आरोपियों द्वारा जमानत न मिलने की स्थिति में, न्यायिक अधिकारी (प्रायः दंडाधिकारी या न्यायाधीश) की निगरानी में जेल अथवा अन्य अधिकृत सीमा में रखा जाता है।
कानूनी प्रावधान
भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC), 1973 के तहत न्यायिक हिरासत की अवधि सामान्यतः 14 दिनों तक होती है, जिसे अदालत के विवेकाधिकार से बढ़ाया जा सकता है। धारा 167 CrPC न्यायिक हिरासत के विभिन्न प्रावधानों का उल्लेख करती है।
उद्देश्य
न्यायिक हिरासत का मुख्य उद्देश्य आरोपी व्यक्ति की उपस्थिति और न्यायिक प्रक्रिया की निष्पक्षता सुनिश्चित करना है, साथ ही पुलिस द्वारा आरोपी के साथ दुर्व्यवहार की संभावना को न्यूनतम करना भी है।
कार्य प्रक्रिया
- आरोपी को पुलिस हिरासत या गिरफ्तारी के पश्चात अदालत में प्रस्तुत किया जाता है।
- अदालत आरोपी की जमानत या न्यायिक हिरासत पर विचार करती है।
- यदि आवश्यकता समझी जाती है, तो न्यायिक हिरासत की अवधि निर्धारित की जाती है।
अंतर: पुलिस हिरासत बनाम न्यायिक हिरासत
- पुलिस हिरासत में आरोपी पुलिस के अधीन होता है, जबकि न्यायिक हिरासत में उसे जेल अथवा अदालत द्वारा निर्दिष्ट निगरानी केंद्र में रखा जाता है।
- पुलिस हिरासत अधिकतम 15 दिन तक सीमित होती है, जबकि न्यायिक हिरासत कई बार लंबी अवधि तक बढ़ाई जा सकती है।
महत्व
न्यायिक हिरासत विधिसम्मत और मानवाधिकारों के संरक्षण के संदर्भ में अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह व्यवस्था अदालत को आरोपी पर नियंत्रण बनाए रखने, अपराध की विवेचना में सहूलियत तथा आरोपी के मूल अधिकारों के संरक्षण में मददगार होती है।
निष्कर्ष
न्यायिक हिरासत भारतीय कानून व्यवस्था का आवश्यक अंग है, जो अपराधी प्रक्रिया की पारदर्शिता, निष्पक्षता और न्यायिक प्रक्रिया को समयबद्ध एवं संयमित रखने में अहम भूमिका निभाता है।
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