सारांश
इस समाचार का केंद्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच बढ़ती नजदीकी, क्वाड ग्रुप की आगामी बैठक, तथा भारत-अमेरिका के रणनीतिक संबंध हैं। व्हाइट हाउस की प्रेस सेक्रेटरी कैरोलीन लेविट ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में भारत को अमेरिका का सबसे महत्वपूर्ण और भरोसेमंद इंडो-पैसिफिक साझेदार बताया। ट्रंप ने मोदी के न्योते पर भारत आने की सहमति दी है और दोनों देशों में बड़ा व्यापार समझौता भी संभव है। चीन और पाकिस्तान के संदर्भ में भारत को यह प्राथमिकता देने को मजबूत संदेश के तौर पर देखा जा रहा है। फिलहाल, भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर अमेरिका में क्वाड विदेश मंत्रियों की बैठक में भाग ले रहे हैं।
विश्लेषण
भारत-अमेरिका संबंधों में हाल के वर्षों में बड़ी प्रगति देखने को मिली है, खासकर जब इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन की आक्रामकता के चलते अमेरिका नए गठबंधन खोज रहा है। इस संबंध की अहमियत, व्हाइट हाउस के बयानों में साफ झलकती है। यह ध्यान देने योग्य है कि ट्रंप का भारत को लेकर रुख अतीत में हमेशा सकारात्मक नहीं रहा: 'ऑपरेशन सिंदूर' जैसे मौके पर वो पाकिस्तान को भी दोस्त कह चुके हैं। परंतु अब राजनीतिक समीकरण बदल चुके हैं, और चीन की चुनौती ने भारत की उपयोगिता बढ़ा दी है। यह विदेशी नीति में व्यावहारिकता और तात्कालिक हितों को दिखाता है।
वहीं, क्वाड की मजबूती से यह संकेत मिलता है कि अमेरिका समेत कई देश क्षेत्रीय स्थिरता और शक्ति-संतुलन के लिए मिलकर कार्य करना चाहते हैं। चीन के लिए यह निश्चित ही गंभीर संदेश है।
व्यापार समझौते का संकेत दोनों देशों के आर्थिक रिश्तों को नई दिशा देगा और निवेश, तकनीक तथा रोज़गार पर भी प्रभाव डालेगा। हालांकि बयानों और वास्तविक नीतिगत बदलावों के बीच फासला रह सकता है, इसलिए आगे के घटनाक्रम पर नजर रखना जरूरी होगा।
चर्चा
यह विषय इसलिए मायने रखता है क्योंकि विश्व राजनीति में गठबंधनों की नीति एक बार फिर केंद्र में आ गई है। भारत का क्वाड, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ अधिक सक्रिय होना चीन के प्रभाव को संतुलित करने की रणनीति का हिस्सा है। यह भी विचारणीय है कि क्या ऐसे गठबंधन सिर्फ चीन के सत्ता विस्तार के विरुद्ध हैं या वास्तव में बहुपक्षीय सहयोग के नए मंच बन सकते हैं?
भारत की बढ़ती अहमियत उसके आर्थिक और सैन्य उभार, और लोकतांत्रिक मूल्यों के कारण भी है। लेकिन सवाल यह भी है कि अमेरिका की दोस्ती स्थायी है या फिर यह केवल चीन-पाकिस्तान के खिलाफ अस्थायी साझेदारी है? अतीत में पाकिस्तान अमेरिका का प्रमुख सहयोगी था; अब वही जगह भारत लेता दिख रहा है—तो क्या इससे क्षेत्रीय शक्ति समीकरण हमेशा के लिए बदल जाएंगे?
अंततः, यह घटनाक्रम भारत के लिए अवसर तो है, पर उसे अपनी विदेश नीति में संतुलन और स्वतंत्रता बनाए रखना होगा। किसी एक ध्रुव पर अत्यधिक निर्भरता दीर्घकाल में नुकसानदेह साबित हो सकती है।
निष्कर्ष
ट्रंप-मोदी की व्यक्तिगत केमेस्ट्री ने द्विपक्षीय संबंधों को नई गति दी है, परंतु संबंध केवल नेताओं की समझदारी पर नहीं, बल्कि रणनीतिक आवश्यकताओं और वैश्विक परिस्थितियों पर भी आधारित हैं। चीन और पाकिस्तान हेतु यह स्पष्ट संदेश है कि शक्ति-संतुलन बदल रहा है, किंतु भारत के लिए आगे बढ़ना विवेकपूर्ण और बहुस्तरीय रणनीति के साथ ही संभव होगा।
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