परिचय
भारत-चीन सीमा विवाद (India-China Border Dispute) दक्षिण एशिया के दो परमाणु शक्तिशाली एवं पड़ोसी देशों, भारत और चीन, के मध्य दशकों से चला आ रहा क्षेत्रीय विवाद है। यह विवाद मुख्यतः हिमालयी सीमांत क्षेत्रों, जैसे लद्दाख, अक्साई चीन, और अरुणाचल प्रदेश, के इर्दगिर्द केंद्रित है। इस विवाद के कारण दोनो देशों के संबंध अक्सर तनावपूर्ण रहते हैं, जिसके कारण दोनों देशों के बीच कूटनीतिक, आर्थिक, और सैन्य स्तर पर गंभीर प्रभाव पड़ते हैं।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
भारत-चीन सीमा विवाद की जड़ें ब्रिटिश औपनिवेशिक काल से जुड़ी हैं, जब भारत की उत्तरी सीमाएं अस्पष्ट और अस्थायी समझौतों पर आधारित थीं। 1914 की शिमला संधि में ब्रिटिश भारत और तिब्बत के बीच 'मैकमोहन रेखा' की स्थापना हुई, जिसे चीन ने कभी भी मान्यता नहीं दी। 1962 में दोनों देशों के बीच एक पूर्ण युद्ध हुआ, जिससे विवाद और भी जटिल हो गया।
प्रमुख विवादित क्षेत्र
- अक्साई चीन: लगभग 38,000 वर्ग किमी का क्षेत्र, जिसे भारत लद्दाख का हिस्सा मानता है, लेकिन वर्तमान में चीन के नियंत्रण में है।
- अरुणाचल प्रदेश: भारत का पूर्वोत्तर राज्य, जिसे चीन 'दक्षिणी तिब्बत' (Southern Tibet) कहता है और अपना क्षेत्र मानता है।
सैन्य एवं कूटनीतिक पहلو
दोनों देशों ने सीमा पर भारी सैन्य तैनाती की है और समय-समय पर सैन्य झड़पें होती रहती हैं (जैसे 2020 का गलवान घाटी संघर्ष)। हाल के वर्षों में दोनों देशों ने शांति की दिशा में कई दौर की वार्ताएं की हैं, लेकिन समाधान अब भी दूर है।
आर्थिक प्रभाव एवं भू-राजनीतिक महत्व
भारत-चीन सीमा विवाद ने दोनों देशों के आर्थिक संबंधों और वैश्विक राजनयिक समीकरणों को भी प्रभावित किया है। चीन भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है। भू-राजनीतिक स्तर पर, अमेरिका, रूस, और पाकिस्तान जैसे देशों की नीतियां भी इस तनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
हाल की प्रगति
हाल के वर्षों में दोनों देशों ने सीमा पर तनाव कम करने, व्यापार और आवागमन बहाल करने जैसे कुछ कदम उठाए हैं। फिर भी, सीमा विवाद, खासकर लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश को लेकर, गंभीर चुनौती बना हुआ है।
निष्कर्ष
भारत-चीन सीमा विवाद न केवल दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों के लिए अहम है, बल्कि यह क्षेत्रीय तथा वैश्विक भू-राजनीतिक संतुलन के लिए भी महत्वपूर्ण है। इसका शांतिपूर्ण समाधान एशिया की स्थिरता के लिए आवश्यक है।
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