सारांश
भारत और पाकिस्तान के बीच मई 2025 में हुई तीखी हवाई लड़ाई के बाद भारत सरकार ने एयर डिफेंस और काउंटर-टेररिज्म जरूरतों के लिए आपातकालीन स्तर पर ड्रोन्स, एयर डिफेंस लॉन्चर, और अन्य सुरक्षा साधनों की बड़ी खरीददारी को मंजूरी दी है। भारत ने जम्मू-कश्मीर में 26 नागरिकों की हत्या के जवाब में पाकिस्तानी ठिकानों पर 'ऑपरेशन सिंदूर' के तहत हमले किए। जवाबी कार्रवाइयों में पाकिस्तान ने ड्रोन्स के जरिये हमले किए और कुछ भारतीय फाइटर जेट्स गिराए। इसके बाद भारत ने तेजी से 19.82 अरब रुपये (231.6 मिलियन डॉलर) के 13 रक्षा समझौतों को अमल में लाया। इनमें मुख्य रूप से भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड के निर्माता IDDIS काउंटर-ड्रोन सिस्टम, LLLR रडार और बहुत-निकट सीमा एयर डिफेंस मिसाइलें शामिल हैं।
विश्लेषण
यह घटना न सिर्फ भारत-पाकिस्तान संबंधों के तनावपूर्ण इतिहास को जोड़ती है, बल्कि बता रही है कि किस तरह गैर-राज्य अभिकर्ताओं द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली टेक्नोलॉजी—विशेषकर ड्रोन—सीमाओं पर सुरक्षा के लिए नई चुनौती बन चुकी है। छद्म युद्ध और आतंक का पारंपरिक जवाब अब ड्रोन, इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर, और तेज़ एक्शन से दिया जा रहा है; इसमें घरेलू रक्षा से जुड़ी कम्पनियों की प्रमुख भूमिका है। भारत का इस बार सरकार और आतंकी तत्वों के बीच भेद न रखना, रणनीतिक दृष्टि से बड़ा बदलाव है: यह इजरायल जैसी 'Zero Tolerance' रणनीति की ओर इशारा करता है, जिससे भविष्य में बड़े टकराव की आशंका भी बढ़ती है।
आर्टिकल में प्रस्तुत परिप्रेक्ष्य अपेक्षाकृत भारतीय है; इसमें पाकिस्तान की स्थिति या अंतरराष्ट्रीय समुदाय की प्रतिक्रिया का जिक्र नहीं। यह एकतरफा सुरक्षा-केंद्रित विश्लेषण है, जिसमें राजनयिक प्रयासों या ह्यूमन राइट्स के सवालों को जगह नहीं मिली है।
चर्चा
यह मुद्दा सिर्फ दक्षिण एशिया के लिए ही नहीं, पूरे विश्व के लिए विचारणीय है: सीमाओं पर नए खतरे, आतंकवादियों का बदलता चेहरा, और बढ़ती तकनीकी जंग सभी अंतरराष्ट्रीय नियम और मानवाधिकार की कसौटियों को चुनौती देते हैं। सीमावर्ती संघर्षों में तेजी, आक्रामक सैन्य नीति और त्वरित व घरेलू हथियार खरीद का चलन पूरी दुनिया में पनप रहा है - रूस-यूक्रेन युद्ध से लेकर इजरायल-गाजा तक।
यह सवाल भी उठता है: क्या आपातकालीन रक्षा खरीद वाकई दीर्घकालिक सुरक्षा बढ़ाती है या हथियारों की दौड़ और संघर्षों को भड़काती है? क्या इन निर्णयों के सामाजिक-आर्थिक प्रभावों और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की कोई भूमिका रह गई है?
इस स्थिति में भारत की राह कठिन है: सुरक्षा, कूटनीति, और लोकतांत्रिक उत्तरदायित्व के बीच संतुलन बनाना सबसे जरूरी चुनौती है।
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