भारत में धार्मिक स्वतंत्रता: क्या है सरकार का रुख?
भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है, जहाँ विविध आस्थाओं और प्रथाओं को संवैधानिक संरक्षण प्राप्त है। हाल ही में, दलाई लामा के पुनर्जन्म विवाद पर भारत सरकार के बयान ने फिर एक बार धार्मिक आज़ादी के मुद्दे को चर्चा के केन्द्र में ला दिया है।
दलाई लामा पुनर्जन्म विवाद: अंतरराष्ट्रीय चर्चा
दलाई लामा का पुनर्जन्म एक अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक और धार्मिक मुद्दा बन चुका है। चीन की सरकार इसका नियंत्रण चाहती है, जबकि भारत ने स्पष्ट किया है कि वह किसी धार्मिक विश्वास या परंपरा के मामलों में दखल नहीं देगा। यह रुख सरकार की धर्म-निरपेक्षता व धार्मिक स्वतंत्रता के सिद्धांत को दर्शाता है।
भारत में धार्मिक स्वतंत्रता के कानून और अधिकार
- संविधान का अनुच्छेद 25 सभी नागरिकों को अपने निर्वाचित धर्म का पालन करने और प्रचार-प्रसार करने की स्वतंत्रता देता है।
- धार्मिक अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और उनके अधिकारों के लिए विशेष संस्थाएं स्थापित की गई हैं।
- "धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम" (Religious Freedom Act) विभिन्न राज्यों में लागू हैं, जिनका उद्देश्य जबरन धर्मांतरण को रोकना है।
भारत-तिब्बत संबंध और चीन की भूमिका
भारत में तिब्बती शरणार्थियों की एक बड़ी आबादी है। दलाई लामा की भारत में मौजूदगी और उनकी धार्मिक गतिविधियाँ अक्सर भारतीय विदेश नीति में संवेदनशीलता का कारण बनती रही हैं। भारत का संतुलित रुख—न तो किसी बाहरी दबाव में आना, न ही अंदरूनी धार्मिक मामालों में हस्तक्षेप करना—दक्षिण एशिया की कूटनीति में एक विशिष्ट उदाहरण है।
धर्मनिरपेक्षता पर आधुनिक चुनौतियाँ
- सोशल मीडिया और राजनीतिक गतिविधियाँ कभी-कभी धार्मिक तनाव बढ़ा देती हैं।
- सरकार को स्वतंत्रता और समाज में एकता बनाये रखने के बीच संतुलन साधना होता है।
- वैश्विक दबावों का असर, जैसे कि दलाई लामा पुनर्जन्म विवाद।
धार्मिक स्वतंत्रता से जुड़े आम सवाल (FAQ)
1. क्या भारत सरकार किसी धार्मिक गुरु के उत्तराधिकारी के चयन को प्रभावित कर सकती है?
नहीं, भारत सरकार ने स्पष्ट किया है कि वह धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करती।
2. यदि धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन हो, तो कहाँ शिकायत करें?
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग या संबंधित राज्य आयोग में शिकायत दर्ज कर सकते हैं।
3. क्या भारत में धर्मांतरण पर कोई रोक है?
कुछ राज्यों में जबरन धर्मांतरण रोकने के लिए कानून हैं, लेकिन स्वेच्छा से धर्मांतरण पर कोई राष्ट्रीय निषेध नहीं है।
निष्कर्ष
भारत में धार्मिक स्वतंत्रता एक संवैधानिक गारंटी है, जिसे सरकार बार-बार दोहराती रही है। दलाई लामा पुनर्जन्म विवाद जैसी घटनाएँ न केवल आस्था संबंधी प्रश्न उठाती हैं, बल्कि भारत के धर्मनिरपेक्ष चरित्र और सामाजिक समरसता की चुनौतियाँ भी सामने लाती हैं। आवश्यकता है, जागरूक समाज और जिम्मेदार सरकार की, जो मौलिक अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करे।
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