भूमिका
राफेल एक दो-इंजन, बहु-भूमिका, चौथी पीढ़ी का लड़ाकू विमान है, जिसे फ्रांसीसी एयरोस्पेस कंपनी डसॉल्ट एविएशन (Dassault Aviation) द्वारा विकसित किया गया है। यह विमान मुख्य रूप से वायु सेना और नौसेना की लड़ाकू आवश्यकताओं के लिए डिज़ाइन किया गया है। भारतीय वायु सेना और फ्रांसीसी वायु सेना सहित कई देशों की सैन्य सेवाओं में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है।
विकास एवं डिजाइन
राफेल का विकास 1980 के दशक के उत्तरार्ध में यूरोफाइटर प्रोजेक्ट के असफल होने के बाद फ्रांसीसी स्वदेशी जरूरतों के अनुसार शुरू हुआ। राफेल को अत्याधुनिक एवियोनिक्स, रडार, हथियार प्रणालियों और स्टेल्थ तकनीक से लैस किया गया है। विमान की डिजाइन डेल्टा-विंग और कैनार्ड कॉन्फिगरेशन पर आधारित है, जिससे इसे उत्कृष्ट सुपरमैनुवरेबिलिटी मिलती है।
प्रमुख विशेषताएँ
- इंजन: दो SNECMA M88 टर्बोफैन इंजन
- अधिकतम गति: लगभग 1.8 मैक
- वजन: लगभग 10 टन खाली (फाइटर), अधिकतम टेक-ऑफ 24.5 टन तक
- रेंज: 3,700 किमी (फेरी रेंज)
- हथियार: हवा से हवा, हवा से जमीन, मार करनी वाली मिसाइलें, लेजर-निर्देशित बम, और 30 मिमी डेक गन।
- एवियोनिक्स: RBE2 AESA रडार, इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणाली SPECTRA, हेल्मेट माउंटेड साइट आदि।
रणनीतिक महत्व
राफेल भारत की वायु शक्ति के आधुनिकीकरण का महत्वपूर्ण अंग बन चुका है। इसकी लंबी दूरी की ऑपरेशनल क्षमताएँ, मल्टीरोल उपयोगिता और शक्तिशाली हथियार तैनाती इसे दक्षिण एशिया में पड़ोसी देशों की अपेक्षा बढ़त प्रदान करती है। पाकिस्तान और चीन के संदर्भ में इसकी भूमिका और चर्चा अक्सर चर्चा का विषय रही है।
खरीद प्रक्रिया एवं विवाद
2016 में भारत सरकार और डसॉल्ट एविएशन के बीच 36 राफेल विमानों के लिए समझौता हुआ, जिससे यह भारतीय रक्षा आयात का एक प्रमुख सौदा बन गया। इस सौदे के साथ आर्थिक, तकनीकी और राजनीतिक स्तर पर कई विवाद भी जुड़े रहे हैं, जिनपर भारत की संसद और न्यायपालिका में जांच-पड़ताल होती रही है।
निष्कर्ष
राफेल विमान तकनीकी श्रेष्ठता, भरोसेमंदता और बहु-दायित्वीय ऑपरेशन के कारण 21वीं सदी के सबसे प्रभावशाली लड़ाकू विमानों में शामिल है। इसके एकीकरण ने भारतीय वायुसेना को रणनीतिक मजबूती और वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता प्रदान की है।
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