सारांश
1 जुलाई 2025 से भारतीय रेलवे ने मेल और एक्सप्रेस ट्रेनों के किराए में बढ़ोतरी कर दी है। एसी कोच का किराया प्रति किलोमीटर दो पैसे और नॉन-एसी कोच का किराया एक पैसा प्रति किलोमीटर महंगा हो गया है। हालांकि उपनगरीय ट्रेनों और मासिक सीजन टिकट (MST) को इसमें छूट दी गई है। साधारण द्वितीय श्रेणी के किराए में 500 किलोमीटर तक कोई वृद्धि नहीं की गई, परंतु इससे अधिक दूरी वाले टिकटों पर भी आधे पैसे प्रति किलोमीटर के हिसाब से बढ़ोतरी हुई है। यह वृद्धि 1 जुलाई 2025 या उसके बाद बुक किए गए टिकटों पर लागू होगी; पुराने टिकटों पर कोई बदलाव नहीं होगा। प्रीमियम ट्रेनों (जैसे राजधानी, शताब्दी, वंदे भारत आदि) पर भी यह नई दरें लागू होंगी।
विश्लेषण
यह किराया वृद्धि रेलवे के आर्थिक संचालन में सुधार और कॉस्ट रिकवरी की आवश्यकता को दर्शाती है। बढ़ते परिचालन व्यय, ईंधन की कीमतें, और इंफ्रास्ट्रक्चर सुधारीकरण की लागत को देखते हुए, छोटे स्तर पर किराया बढ़ाना रेलवे की राजस्व बाध्यता का प्रतिबिंब है। हालांकि, हर बार वृद्धि यात्रियों पर भार डालती है और निचले व माध्यम वर्ग के लिए यात्रा को अपेक्षाकृत महंगा बनाती है।
इस नीति में कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं पर विचार किया गया है—जैसे कि उपनगरीय यात्रियों तथा MST धारकों पर कोई भार न डालना या छोटी दूरी के यात्रियों के लिए वृद्धि सीमित रखना। इसका स्पष्ट संकेत है कि दैनिक यात्रियों और गरीब यात्रियों की समस्याओं का आंशिक समाधान करने की कोशिश की गई है। दूसरी ओर, लंबी दूरी और प्रीमियम ट्रेनों में वृद्धि से साधन संपन्न यात्रियों से और अधिक राजस्व एकत्र करने का प्रयास है।
प्रेस नोट में उल्लेख किया गया है कि आरक्षण शुल्क व अन्य अधिभार में कोई बदलाव नहीं किया गया, इससे टिकट की कुल लागत में बेतहाशा वृद्धि नहीं होगी।
चर्चा
रेलवे किराया बढ़ोतरी हमेशा संवेदनशील मुद्दा रहा है—सस्ती यात्रा भारतीय रेलवे की पहचान रही है और करोड़ों नागरिकों की रोजमर्रा की जिंदगी इससे जुड़ी है। यात्री किराया में हर वृद्धि आम जनता, खासकर गरीब, छात्रों व कामकाजी वर्ग को प्रभावित करती है। आज के आर्थिक दबाव में रेलवे सुधार और बुनियादी ढांचे के लिए पैसों की आवश्यकता को नकारा नहीं जा सकता, लेकिन यह भी सुनिश्चित करना होगा कि यह बोझ सीमित और संतुलित रहे।
इतिहास में हम देख चुके हैं कि बड़ी किराया वृद्धि सार्वजनिक आक्रोश, प्रदर्शन या सरकार पर दबाव का कारण बनती रही है। यह भी एक तथ्य है कि भारतीय रेलवे लंबे समय से सबसे किफायती सार्वजनिक परिवहन सेवाओं में से है, और टिकट की कीमतें अभी भी वैश्विक स्तर पर कम ही हैं।
अंततः यह प्रश्न बना रहेगा कि यात्री भार और राजस्व की जुगलबंदी कैसे की जाए? क्या रेलवे अपने संचालन में लागत दक्षता सुधार सकती है या सारी उगाही यात्रियों से ही की जाती रहेगी? नीति निर्माताओं के लिए आवश्यक है कि वे सुधार और सामाजिक न्याय का संतुलन बनाए रखें—यही भारतीय रेलवे के भविष्य व जनविश्वास की कुंजी है।
Comments
No comments yet. Be the first to comment!