क्या आपने कभी सोचा है कि भारत-पाकिस्तान के बीच लगातार चलती कश्मीर की सियासत का हल किसी युद्ध नहीं, बल्कि किसी खेल में छुपा हो सकता है? दरअसल, इतिहास के पन्नों में ऐसी घटनाएँ दर्ज हैं जब सीमाओं पर तलवारें कम, तो क्रिकेट के बल्ले अधिक बोले।
1971 के युद्ध के बाद, 1987 का शारजाह कप या 2004 में पाकिस्तान का भारत आकर क्रिकेट खेलना—हर बार सूबे के नेताओं के सख़्त बयान और सैनिकों की तैनाती के बीच, क्रिकेट ने कुछ देर को लोगों के चेहरों पर मुस्कान बिखेरी। जरा कल्पना कीजिए—अगर किसी दिन दोनों देशों के नेता टीवी पर आरोप-प्रत्यारोप की जगह, एक क्रिकेट मैदान में आमने-सामने हों, और दर्शक मैदान से "शांति! शांति!" के नारे लगा रहे हों।
जब हेडलाइन में धमकी और कश्मीर की बात होती है, तो दिमाग़ युद्ध की ओर जाता है। लेकिन क्या हो अगर साझा इतिहास और साझा जुनून—क्रिकेट—एक पुल का काम करें? क्या ये खेल कभी कश्मीर के मुद्दे को शांतिपूर्ण चर्चा के मैदान में बदल सकता है?
अक्सर कहते हैं: सीमा पर सबसे पेचीदा सवाल बुलेट से नहीं, बॉलर की गेंद से हल होते हैं। शायद हमें खेल, कला और साझा संस्कृति के सरहद पार सेतु की अहमियत को फिर से समझना चाहिए।
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